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ग़ज़ल
आहों के बादल क्यूँ दिल में बिन बरसे ही लौट गए हैं
अब के बरस सावन का महीना कैसा प्यासा प्यासा गया है
बशीर बद्र
ग़ज़ल
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
हम भी हैं वही तुम भी हो वही ये अपनी अपनी क़िस्मत है
तुम खेल रहे हो ख़ुशियों से हम डूब गए हैं आहों में
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
कभी सर्द आहों के सिलसिले कभी ठंडी साँसों के मश्ग़ले
वो हमारी नक़लें उतारना तुम्हें याद हो कि न याद हो