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ग़ज़ल
मैं हाथ हाथों में उस के न दे सका था 'शुमार'
वो जिस की मुट्ठी में लम्हा बड़ा सुहाना था
अख़्तर शुमार
ग़ज़ल
वो मुस्कुरा के कोई बात कर रहा था 'शुमार'
और उस के लफ़्ज़ भी थे चाँदनी में बिखरे हुए
अख़्तर शुमार
ग़ज़ल
ख़ूँ का ख़त्त-ए-इस्तवा 'माजिद' तअ'स्सुब में घिरा
प्यार की बाद-ए-सबा बाद-ए-शुमाली हो गई