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ग़ज़ल
यूँ तो आपस में बिगड़ते हैं ख़फ़ा होते हैं
मिलने वाले कहीं उल्फ़त में जुदा होते हैं
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
बे-साख़्ता निगाहें जो आपस में मिल गईं
क्या मुँह पर उस ने रख लिए आँखें चुरा के हाथ
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
चार दिन के लिए दुनिया में लड़ाई कैसी
वो भी क्या लोग हैं आपस में शरर रखते हैं
लाला माधव राम जौहर
ग़ज़ल
लिखना कहना तर्क हुआ था आपस में तो मुद्दत से
अब जो क़रार किया है दिल से ख़त भी गया पैग़ाम गया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ये नाज़ुक लब हैं या आपस में दो लिपटी हुई कलियाँ
ज़रा इन को अलग कर दो तरन्नुम फूट जाएँगे
राजेन्द्र कृष्ण
ग़ज़ल
आया था क्यूँ अदम में क्या कर चला जहाँ में
ये मर्ग-ओ-ज़ीस्त तुझ बिन आपस में हँसतियाँ हैं
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
कल लड़ गईं कूचे में आँखों से मिरी अँखियाँ
कुछ ज़ोर ही आपस में दो दो हुईं समघातें