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ग़ज़ल
हाथ खींचे क्यूँ न आराइश से वो नाज़ुक बदन
साइद-ए-नाज़ुक पे करती हैं गिरानी चूड़ियाँ
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
ब-ज़ाहिर हैं जदीद उस्लूब की आराइशें दिलकश
मगर तहक़ीक़-ए-अर्बाब-ए-हुनर कुछ और कहती है
अनवर सादिक़ी
ग़ज़ल
खोखले चेहरों पे सीम-ओ-ज़र की थीं आराइशें
अहल-ए-मअ'नी को मगर लफ़्ज़ों की ख़ैरातें मिलीं