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ग़ज़ल
फ़ाश कर दीं मैं ने ख़ुद अंदर की बे-तर्तीबियाँ
ज़िंदगी आराइशों में और नंगी हो गई
मुज़फ़्फ़र वारसी
ग़ज़ल
हाथ खींचे क्यूँ न आराइश से वो नाज़ुक बदन
साइद-ए-नाज़ुक पे करती हैं गिरानी चूड़ियाँ
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
काफ़ी है अपने वास्ते आराइश-ए-वजूद
आराइशों से पाक है दामान-ज़िंदगी
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
ग़ज़ल
क़िस्तों में भर रहे हैं उन्हीं का मु'आवज़ा
'उम्रें जो हम ने काटी थीं आराइशों में दोस्त
दिल सिकन्दरपुरी
ग़ज़ल
ज़मीन-ए-शेर की आराइशों ही तक न रख मतलब
तख़य्युल है वही जो हल्क़ा-ए-जिबरील तक पहुँचे