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ग़ज़ल
ख़ुदा जुरअत न दे मुझ को किसी दिन लब-कुशाई की
कि मुझ से नाला-ए-महरूम-असर देखा नहीं जाता
क़ैसर हैदरी देहलवी
ग़ज़ल
'बेदार' करूँ किस से मैं इज़हार-ए-मोहब्बत
बस दिल है मिरा महरम-ए-असरार-ए-मोहब्बत
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
सेहन-ए-गुलशन से मिरी ख़ाक-ए-नशेमन न उड़ा
ऐ सबा महरम-ए-असरार-ए-गुलिस्ताँ हूँ मैं
कैफ़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
'शोर' उठा दूँ मैं गुल-ओ-लाला के पर्दे लेकिन
याँ कोई महरम-ए-असरार-ए-गुलिस्ताँ भी नहीं
मंज़ूर हुसैन शोर
ग़ज़ल
मुझ पर ऐ महरम-ए-जाँ पर्दा-ए-असरार कूँ खोल
ख़्वाब-ए-ग़फ़लत सें उठा दीदा-ए-बेदार कूँ खोल
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
एक तन्हा ख़ातिर-ए-महज़ूँ जिसे अफ़्कार सौ
एक मुझ बीमार से वाबस्ता हैं आज़ार सौ
सैय्यद मोहम्मद मीर असर
ग़ज़ल
आँखें असीर-ए-ख़्वाब थीं ख़्वाब एक ही से थे
हर एक जाँ पे अब के अज़ाब एक ही से थे
ख़ालिद महमूद ज़की
ग़ज़ल
असीर-ए-हल्क़ा-ए-गेसू-ए-ख़ूबाँ हो नहीं सकता
वो दिल तू जिस को तस्कीं दे परेशाँ हो नहीं सकता
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
असीर-ए-इश्क़ हूँ दर्द-ए-निहाँ सोने नहीं देता
मुझे डसती है तन्हाई मकाँ सोने नहीं देता
अहमद वक़ास महरवी
ग़ज़ल
दिल भी नहीं है महरम-ए-असरार-ए-इश्क़ दोस्त
ये राज़दाँ भी हल्क़ा-ए-बैरून-ए-दर है आज