aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "aaseb-zada"
रात अजब आसेब-ज़दा सा मौसम थाअपना होना और न होना मुबहम था
किसी आसेब-ज़दा दिल की सदा है क्या हैये मिरे साथ समुंदर है हवा है क्या है
दिल है अब ख़ाना-ए-आसेब-ज़दा की सूरतज़ख़्म रौज़न इसी तारीक मकाँ में होंगे
शहर आसेब-ज़दा लगता हैकूचे कूचे में बला बैठी है
उस से 'शाग़िल' हैं गुरेज़ाँ सब हीवो भी आसेब-ज़दा है शायद
जब चाँदनियाँ घर की दहलीज़ पे चलती हैंआसेब-ज़दा रूहें सड़कों पे टहलती हैं
चीख़ता खंडर है रोती है हवेली दिल कीघर ये आसेब-ज़दा है तिरे जाने के बाद
लम्हा लम्हा मिरे हाथों से सरकता हुआ दिनऔर आसेब-ज़दा दिल में उतरती हुई शाम
दुख दर्द यहाँ आएँ तो वापस नहीं जातेये दिल कोई आसेब-ज़दा बारा-दरी है
दर बंद किए लोग घरों में हैं मुक़य्यदआसेब-ज़दा रात के ढलने की ख़बर दे
हिज्र से जान छुड़ाने की सई में 'शोबी'एक कमरा जो था आसेब-ज़दा छोड़ दिया
बेकार ही डरते थे कि उस हिज्र-मकाँ मेंआसेब थे आसेब-ज़दा कोई नहीं था
ठीक कहते हो कि आसेब-ज़दा होता है इश्क़मेरे अंदर भी कोई शोर मचा जाता है
चीख़ उठती हुई हर घर से नज़र आती हैहर मकाँ शहर का आसेब-ज़दा लगता है
दिल हम ने 'अज़ीम' अपना आसेब-ज़दा रक्खाजो ख़्वाब जन्म लेता वो ख़ौफ़ से मर जाता
रात के पिछले पहर जिस ने जगाया क्या थाकोई आसेब-ज़दा हिज्र का साया क्या था
इन शिकस्ता दर-ओ-दीवार की सूरत हम भीबहुत आसेब-ज़दा होंगे नज़र आने में
जिस को देखो वो गिरफ़्तार-ए-बला लगता हैशहर का शहर ही आसेब-ज़दा लगता है
घर की दीवार का साया भी जलाता है बदनये जगह अब मुझे आसेब-ज़दा लगती है
ज़ेहन मफ़्लूज तो अफ़्कार हैं आसेब-ज़दाये भी क्या वक़्त है हर बात पे डर डर जाना
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