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ग़ज़ल
फ़ासिक़ जो अगर आशिक़-ए-दीवाना हुआ तो क्या
दुनिया के मतालिब को फ़रज़ाना हुआ तो क्या
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
ग़ज़ल
बाँकपन आशिक़-ए-दीवाना-ए-मिज़्गाँ के हुज़ूर
नोक की लेने कहाँ नश्तर-ए-फ़स्साद आया
सय्यद अमीर हसन बद्र
ग़ज़ल
दाग़ दिल पर नाला लब पर चश्म गिर्यां सीना रीश
'आशिक़'-ए-शोरीदा को किस दम फ़राग़ आया है हाथ
आशिक़ अकबराबादी
ग़ज़ल
क्या ज़ीस्त है ये ख़ाक मिरी आशिक़-ए-नाशाद
गह मसरफ़-ए-फ़रियाद हूँ गह वक़्फ़-ए-फ़ुग़ाँ हूँ
आशिक़ अकबराबादी
ग़ज़ल
उस शख़्स की मुट्ठी में है सद-नौ-ए-करामात
'दीवाना' कि है ख़ंदा-जबीं अज़्ब-ए-बयाँ है
मोहन सिंह दीवाना
ग़ज़ल
मैं वो हूँ आशिक़-ए-दीवाना गर मुझे की पंद
ब-रंग-ए-जैब उड़ा दूँगा धज्जियाँ नासेह
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
शम-ए-महफ़िल हूँ न आशिक़ न मैं बू-ए-गुल हूँ
मह-जबीं क्यूँ मुझे आँचल की हवा देते हैं
आशिक़ अकबराबादी
ग़ज़ल
मिरे नालों का 'आशिक़' रंग उड़ाया अंदलीबों ने
ख़िराम-ए-यार की शोहरत हुई सारे चकोरों में
आशिक़ अकबराबादी
ग़ज़ल
रब्त कुछ दाग़-ओ-जिगर का तो है चस्पाँ 'आशिक़'
वर्ना इस दौर में कोई भी किसी का न हुआ
आशिक़ अकबराबादी
ग़ज़ल
मिले न क्यूँ तुम्हें शाहों का मर्तबा 'आशिक़'
बहुत दिनों दर-ए-ख़्वाजा पे है गदाई की