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ग़ज़ल
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
ज़ाहिदो रौज़ा-ए-रिज़वाँ से कहो इश्क़ अल्लाह
आशिक़ो कूचा-ए-जानाँ से कहो इश्क़ अल्लाह
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
रुमूज़-ए-आशिक़ी को आशिक़ो तुम 'दाग़' से पूछो
कि बारीकी में बारीकी उसी कामिल से निकलेगी
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
त'अल्लुक़ 'आशिक़-ओ-मा'शूक़ का तो लुत्फ़ रखता था
मज़े अब वो कहाँ पाती रही बीबी मियाँ हो कर
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
इश्क़-बाज़ाँ के तईं 'इश्क़ में तेरे ऐ यार
मस्जिद-ओ-मदरसा-ओ-दैर-ओ-हरम चारों एक
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
ग़ज़ल
जो कर के ज़ब्त साथ अश्कों के हैं आने नहीं देता
सदा देता है दिल पहलू से हम बाहर निकलते हैं
रशीद लखनवी
ग़ज़ल
शम' चलती है तो परवाने भी जल जाते हैं साथ
वाह क्या इन 'आशिक़-ओ-मा'शूक़ का दिल एक है
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
नुमूद ऐ आशिक़ो गर मा'रके में इश्क़ के चाहो
तो माँगो तब्ल नाले से अलम-दार आह से माँगो