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ग़ज़ल
मिरी ज़िंदगी है ज़ालिम तिरे ग़म से आश्कारा
तिरा ग़म है दर-हक़ीक़त मुझे ज़िंदगी से प्यारा
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है
उसी का सब है जल्वा जो जहाँ में आश्कारा है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
यहाँ गुम-सुम से लोगों पर कभी पलकें नहीं उट्ठीं
इशारा करने वालों को इशारा होने लगता है
अहमद अताउल्लाह
ग़ज़ल
ऐ निगाह-ए-शौक़ नज़्ज़ारा ये नज़्ज़ारा है क्या
आश्कारा भी है जल्वा आश्कारा भी नहीं