aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "aavaaz-garo.n"
सुनते हैं फिर इक रोज़ सुनाई नहीं देतीये चीख़ने चिल्लाने की आवाज़ घरों से
मेरे होंटों पे ख़मोशी का न कतबा लिखनाघट के रह जाएगी आवाज़-गरों की आवाज़
आवाज़ ग़मों में फ़ौत हुईअल्फ़ाज़ बहुत मुरझाए हैं
घरों में शम्अ की सूरत वो रौशनी कर केपिघल रहा है हर इक पल तमाज़तों के एवज़
मह-रुख़ जो घरों से कभी बाहर निकल आएपस-मंज़र-ए-शब से कई मंज़र निकल आए
एक ही आवाज़ पर वापस पलट आएँगे लोगतुझ को फिर अपने घरों में ढूँडने जाएँगे लोग
उदासी के मंज़र मकानों में हैंअँधेरे अभी आशियानों में हैं
सुने कोई तो अब भी रौशनी आवाज़ देती हैगुफाओं से पहाड़ों से बयाबानों से ग़ारों से
उसे लगा था किसी और ही गली में हुआजो हादिसा था ख़बर में मिरी गली में हुआ
दो आबनूसी फूल हैं पत्थर पे काई हैसहरा के सब्ज़ बाग़ में शब आ समाई है
इन सहमे हुए शहरों की फ़ज़ा कुछ कहती हैकभी तुम भी सुनो ये धरती क्या कुछ कहती है
बुझा भी जाए कोई आ के आँधियों की तरहकि जल रहा हूँ कई युग से मैं दियों की तरह
शादाब-ओ-शगुफ़्ता कोई गुलशन न मिलेगादिल ख़ुश्क रहा तो कहीं सावन न मिलेगा
रेज़ा-रेज़ा हुए यूँ सुब्ह के आसार कि बसऐसे ख़्वाबों पे चलाई गई तलवार कि बस
आतिश-ए-हुस्न से इक आब है रुख़्सारों मेंऐ तिरी शान कि पानी भी है अँगारों में
रोने को बहुत रोए बहुत आह-ओ-फ़ुग़ाँ कीकटती नहीं ज़ंजीर मगर सूद-ओ-ज़ियाँ की
धूम गुम-गश्ता ख़ज़ानों की मचाता फिरे कौनइन ज़मानों में जो थे ही नहीं जाता फिरे कौन
तपती हुई राहों पे फिराया मुझे दिन-भरयूँ तेरे तसव्वुर ने सताया मुझे दिन-भर
सुने कोई तो अब भी रौशनी आवाज़ देती हैपहाड़ों से गुफाओं से बयाबानों से ग़ारों से
तन-ए-नहीफ़ की ख़ातिर रिदा नहीं माँगीबहुत दिनों से ख़ुदा से दुआ नहीं माँगी
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