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ग़ज़ल
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
ख़िल्क़त के आवाज़े भी थे बंद उस के दरवाज़े भी थे
फिर भी उस कूचे से गुज़रे फिर भी उस का नाम लिया है
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
कासा-ए-शाम में सूरज का सर और आवाज़-ए-अज़ाँ
और आवाज़-ए-अज़ाँ कहती है फ़र्ज़ निभाना है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
है किस का इंतिज़ार कि ख़्वाब-ए-अदम से भी
हर बार चौंक पड़ते हैं आवाज़-ए-पा के साथ
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
फ़रेब-ए-आरज़ू की सहल-अँगारी नहीं जाती
हम अपने दिल की धड़कन को तिरी आवाज़-ए-पा समझे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
न ग़ुबार-ए-रह-ए-मंज़िल है न आवाज़-ए-जरस
कौन मुझ रहरव-ए-गुम-कर्दा-निशाँ तक पहुँचे
हफ़ीज़ होशियारपुरी
ग़ज़ल
कितने सादा दिल हैं अब भी सुन के आवाज़-ए-जरस
पेश ओ पस से बे-ख़बर घर से निकल जाते हैं लोग