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ग़ज़ल
तोशक बाला पोश रज़ाई है भूले मजनूँ बरसों तक
जब दिखलावे ज़ुल्फ़ सजन की बन में आवते अब्रों को
नाजी शाकिर
ग़ज़ल
क्या ही शिकार-फ़रेबी पर मग़रूर है वो सय्याद बचा
ताइर उड़ते हवा में सारे अपने असारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
जब तुम से मोहब्बत की हम ने तब जा के कहीं ये राज़ खुला
मरने का सलीक़ा आते ही जीने का शुऊ'र आ जाता है
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
मय-कदा सुनसान ख़ुम उल्टे पड़े हैं जाम चूर
सर-निगूँ बैठा है साक़ी जो तिरी महफ़िल में है