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ग़ज़ल
फिर क्यूँ न चाक हो जो हैं ज़ोर-आज़माइयाँ
बाँधूंगा फिर दुपट्टा से उस बे-ख़ता के हाथ
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
यही है आज़माना तो सताना किस को कहते हैं
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तिहाँ क्यूँ हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कोई और तो नहीं है पस-ए-ख़ंजर-आज़माई
हमीं क़त्ल हो रहे हैं हमीं क़त्ल कर रहे हैं
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
उन्हीं के दिल से कोई उस की अज़्मतें पूछे
वो एक दिल जिसे सब कुछ लुटा के लूट लिया
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
दिल है दाग़ जिगर है टुकड़े आँसू सारे ख़ून हुए
लोहू पानी एक करे ये इश्क़-ए-लाला-अज़ाराँ है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
कौन-ओ-इमकान में दो तरह के ही तो शो'बदा-बाज़ हैं
एक पर्दा गिराता है और एक पर्दा नहीं छोड़ता
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
क़ाबिल अजमेरी
ग़ज़ल
एक परी की ज़ुल्फ़ों में यूँ फँसा हुआ है चाँद
हम को लगता है बादल में छुपा हुआ है चाँद