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ग़ज़ल
खड़ा है 'अब्र' दर पर कुछ नहीं देते न दो लेकिन
नहीं दिल तोड़ते अरबाब-ए-हिम्मत अपने साइल का
अब्र अहसनी गनौरी
ग़ज़ल
कौन अब कश्मकश-ए-ज़ीस्त से दे मुझ को नजात
कर चुका है मिरा क़ातिल नज़र-अंदाज़ मुझे
अब्र अहसनी गनौरी
ग़ज़ल
'अब्र' मैं क्या कह सकूँगा उन से हाल-ए-दर्द-ए-दिल
जो ज़बाँ से लफ़्ज़ निकलेगा फ़ुग़ाँ हो जाएगा
अब्र अहसनी गनौरी
ग़ज़ल
वही अज़़कार-ए-हवादिस वही ग़म के क़िस्से
'अब्र' क्या इस के सिवा है तिरे अफ़्सानों में
अब्र अहसनी गनौरी
ग़ज़ल
दुनिया हो 'अब्र' या वो अदम हो कि बज़्म-ए-हश्र
उन की ही जुस्तुजू में रहे हम जहाँ रहे
अब्र अहसनी गनौरी
ग़ज़ल
सर के ऊपर ख़ाक उड़ी तो सब दिल थाम के बैठ गए
ख़बर नहीं थी गुज़र चुका है मौसम अब्र-ए-नवाज़िश का
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
जब सर्फ़-ए-गुफ़्तुगू हूँ तो देखे उन्हें कोई
मंज़ूर हो जो अब्र-ए-गुहर-बार देखना