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ग़ज़ल
इन अब्रूओं के हल्क़ा में वो अँखड़ियाँ नहीं
दो ताक़ पर हैं दो गुल-ए-नर्गिस धरे हुए
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
अबरुओं ने सच कहा उस के इशारे की है देर
देखते बिल्कुल नहीं फिर अपने बेगाने को हम