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ग़ज़ल
ये सूरज चाँद की यारी बड़ी अद्भुत पहेली है
कहें दोनों ही आपस में कि तुम आओ मैं जाता हूँ
पल्लवी मिश्रा
ग़ज़ल
ये सर्द रातें भी बन कर अभी धुआँ उड़ जाएँ
वो इक लिहाफ़ मैं ओढूँ तो सर्दियाँ उड़ जाएँ
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
लेक मैं ओढूँ बिछाऊँ या लपेटूँ क्या करूँ
रूखी फीकी ऐसी सूखी मेहरबानी आप की
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
क्या बचाऊँ तुझे क्या लुटाऊँ तुझे मुख़्तसर ज़िंदगी
ख़ुद पे ओढूँ कि नीचे बिछाऊँ तुझे मुख़्तसर ज़िंदगी
नीलम मालिक
ग़ज़ल
आँचल छोड़ूँ बादल ओढूँ पीछे पीछे चाँद
आँखें खोलूँ, लाख टटोलूँ कुछ नहीं मेरे हात
निकहत यासमीन गुल
ग़ज़ल
मिटाया पास-ए-रुस्वाई से मेरी आश्नाई को
बिछाऊँ आप की इस्मत को ओढूँ पारसाई को