aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "adeel zaidi"
ख़ाली दुनिया में गुज़र क्या करतेबिन तिरे 'उम्र बसर क्या करते
ये ज़मीनी भी है ज़मानी भीफ़ितरत-ए-इश्क़ आसमानी भी
मोहब्बत की सज़ा पाई बहुत हैहमारे ग़म में गीराई बहुत है
ये भी क़िस्सा तमाम कर आयाआज चौखट पे जान धर आया
डराएगी भला क्या तेरी गर्दिश आसमाँ मुझ कोमिला रब से दुआ-ए-फ़ातिमा का साएबाँ मुझ को
कुछ बताना नहीं कि तुझ से कहेंदिल दुखाना नहीं कि तुझ से कहें
घर अता कर मकाँ से क्या हासिलसिर्फ़ वहम-ओ-गुमाँ से क्या हासिल
हम ने थामा यक़ीं को गुमाँ छोड़ करइक तरफ़ हो गए दरमियाँ छोड़ कर
नाम सुनता हूँ तिरा जब भरे संसार के बीचलफ़्ज़ रुक जाते हैं आ कर मिरी गुफ़्तार के बीच
बस लम्हे भर में फ़ैसला करना पड़ा मुझेसब छोड़-छाड़ घर से निकलना पड़ा मुझे
हम अपना आप लुटाने कहाँ पे आ गए हैंख़ुद अपनी क़द्रें गँवाने कहाँ पे आ गए हैं
तू जो चाहे भी तो सय्याद नहीं होने केलब हमारे लब-ए-फ़रियाद नहीं होने के
वक़्त मुश्किल है अता कर दो ज़रा थोड़ी सीबा'द में देना जो देनी हो सज़ा थोड़ी सी
क़र्ज़-ए-जाँ से निमट रही है हयातउस की जानिब पलट रही है हयात
रह-ए-हयात में जो लोग जावेदाँ निकलेवही वफ़ा-ओ-मोहब्बत के तर्जुमाँ निकले
जिस तरह चाहिए कब कार-ए-वफ़ा होता हैहक़ मोहब्बत का कहाँ हम से अदा होता है
उस को जब कि मिरे अंजाम से कुछ काम नहींमुझ को भी इश्क़ के इक़दाम से कुछ काम नहीं
रह-ए-ख़िज़ाँ में तलाश-ए-बहार करते रहेवो एक तरफ़ा सही तुम से प्यार करते रहे
जहान-ए-इल्म का बाब-ए-निसाब होते हुएभटक रहा हूँ मैं अहल-ए-किताब होते हुए
ये हाल माह-ओ-साल है फ़िराक़ से विसाल तकहयात को ज़वाल है फ़िराक़ से विसाल तक
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