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ग़ज़ल
कौन होता है हरीफ़-ए-मय-ए-मर्द-अफ़गन-ए-इश्क़
है मुकर्रर लब-ए-साक़ी पे सला मेरे बा'द
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ख़लल-अफ़गन तिरी बज़्म-ए-तरब में कौन हो ज़ालिम
हुआ क्या गर तिरे कूचे में कोई तुफ़्ता-ए-जाँ रोया
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़ यक-अफ़्ग़ाँ है
ख़मोशी रेशा-ए-सद-नीस्ताँ से ख़स-ब-दंदाँ है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जब कभी दरिया में होते साया-अफ़गन आप हैं
फ़िल्स-ए-माही को बताते माह-ए-रौशन आप हैं
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
निगाह-ए-यास भी इस सैद-ए-अफ़्गन पर ग़नीमत है
निहायत तंग है ऐ सैद-ए-बिस्मिल वक़्त फ़ुर्सत का
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
न ले ऐ नावक-अफ़गन दिल को मेरे चीर पहलू से
कि वो तो जा चुका साथ आह के जूँ तीर पहलू से
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
आह किस अंदाज़ से गुज़रा बयाबाँ से कि 'मीर'
जी हर इक नख़चीर का उस सैद-ए-अफ़्गन में रहा
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
कर के वो जौर-ओ-सितम हँस के लगा ये कहने
आह ओ अफ़्ग़ाँ का तिरी हम भी असर देखें तो