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ग़ज़ल
उफ़-रे बाद-ए-जोश-ए-जवानी आँख न उन की उठती थी
मस्ताना हर एक अदा थी हर इश्वा मस्ताना था
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
दिल को इक सूरत भाई थी इस अम्बोह में पर हम ने
जाने इस अफ़रा-तफ़री में किस की सम्त इशारा किया
सऊद उस्मानी
ग़ज़ल
अख़्तर अंसारी
ग़ज़ल
उफ़-री मनाज़िल-ए-बुलंद तेरे हरीम-ए-नाज़ की
पा-ए-तलब को कितने तय करने पड़े हैं आसमाँ