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ग़ज़ल
न छेड़ ऐ हम-नशीं कैफ़िय्यत-ए-सहबा के अफ़्साने
शराब-ए-बे-ख़ुदी के मुझ को साग़र याद आते हैं
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
हमारे बा'द अब महफ़िल में अफ़्साने बयाँ होंगे
बहारें हम को ढूँढेंगी न जाने हम कहाँ होंगे
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते
जो वाबस्ता हुए तुम से वो अफ़्साने कहाँ जाते
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
मुख़्तसर क़िस्सा-ए-ग़म ये है कि दिल रखता हूँ
राज़-ए-कौनैन ख़ुलासा है इस अफ़्साने का
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
ख़याल-ओ-ख़्वाब की सूरत बिखर गया माज़ी
न सिलसिले न वो क़िस्से न अब वो अफ़्साने
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
हमें रूदाद-ए-हस्ती रात भर में ख़त्म करनी है
न छेड़ो और अफ़्साने सितारो तुम तो सो जाओ
क़ाबिल अजमेरी
ग़ज़ल
कल मातम बे-क़ीमत होगा आज उन की तौक़ीर करो
देखो ख़ून-ए-जिगर से क्या क्या लिखते हैं अफ़्साने लोग
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
आँखें पुर-नम हो जाती हैं ग़ुर्बत के सहराओं में
जब उस रिम-झिम की वादी के अफ़्साने याद आते हैं
हबीब जालिब
ग़ज़ल
किस का किस का हाल सुनाया तू ने ऐ अफ़्साना-गो
हम ने एक तुझी को ढूँडा इस सारे अफ़्साने में
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ज़िद्दी वहशी अल्लहड़ चंचल मीठे लोग रसीले लोग
होंट उन के ग़ज़लों के मिसरे आँखों में अफ़्साने थे
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
महफ़िल महफ़िल अपना तअल्लुक़ आज है इक मौज़ू-ए-सुख़न
कल तक तर्क-ए-तअल्लुक़ के भी अफ़्साने बन जाएँगे
बशर नवाज़
ग़ज़ल
औरों की मोहब्बत के दोहराए हैं अफ़्साने
बात अपनी मोहब्बत की होंटों पे नहीं आई
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
बन गई नक़्श जो सुर्ख़ी तिरे अफ़्साने की
वो शफ़क़ है कि धनक है कि हिना है क्या है