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ग़ज़ल
दुश्मनों ने आज जो देखा मिरा हुस्न-ए-सुलूक
वो 'वफ़ा' अपना निशाना ख़ुद ख़ता करने लगे
मुहिबुर्रहमान वफ़ा
ग़ज़ल
रेज़ा रेज़ा है मिरी जान तलब में जिस की
उस को तश्कीक है अफ़सोस-ए-वफ़ा पर मेरी
मोहम्मद तन्वीरुज़्ज़मां
ग़ज़ल
राह-ए-वफ़ा में हम ने 'वफ़ा' जब अपना सब कुछ वार दिया
तब जा कर इस दश्त-ए-जुनूँ में आए हैं समझाने लोग
वफ़ा सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
फिर आज अहल-ए-जौर को शिकस्त-ए-फ़ाश हो गई
फिर आज अहल-ए-दिल ने परचम-ए-'वफ़ा' उठा लिया
वफ़ा सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
हैं कहाँ तेरी वो चालाकियाँ ऐ दस्त-ए-जुनूँ
जेब 'अफ़सोस' का सद-हैफ़ गुलू-गीर रहे
मीर शेर अली अफ़्सोस
ग़ज़ल
अफ़्सोस मिरी जान भी क्या खोवेगा अब ये
रुस्वा तो किया इस दिल-ए-नाशाद ने मुझ को