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ग़ज़ल
सारी गली सुनसान पड़ी थी बाद-ए-फ़ना के पहरे में
हिज्र के दालान और आँगन में बस इक साया ज़िंदा था
जौन एलिया
ग़ज़ल
महफ़िल में तुम अग़्यार को दुज़-दीदा नज़र से
मंज़ूर है पिन्हाँ न रहे राज़ तो देखो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
हम कि जिन्हें तारे बोने थे हम कि जिन्हें सूरज थे उगाने
आस लिए बैठे हैं सहर की जलते दिए बुझा देने से