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ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
ऐ 'फ़ना' मिलता है आशिक़ को बक़ा का पैग़ाम
ज़िंदगी जब रह-ए-उल्फ़त में फ़ना होती है
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
मुझे सब ख़बर है मिरे सनम कि रह-ए-'फ़ना' में हयात है
उसे मिल गई नई ज़िंदगी तिरे आस्ताँ पे जो मर गया
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
पैग़ाम-ए-'फ़ना' लाया तस्कीन-ए-दिल-ए-मुज़तर
वो आ गए नज़रों में जब वक़्त-ए-विसाल आया
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
तुम पर असरार-ए-फ़ना राज़-ए-बक़ा खुल जाते
तुम ने एक बार तो यज़्दाँ को पुकारा होता
परवीन फ़ना सय्यद
ग़ज़ल
ऐ 'फ़ना' बादा-कशी में ये उन्ही का है करम
उन की मस्त आँखों से पी कर भी सरापा होश हैं
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
अहल-ए-ग़म आओ ज़रा सैर-ए-गुलिस्ताँ कर लें
गर ख़िज़ाँ है तो चलो शग़्ल-ए-बहाराँ कर लें