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ग़ज़ल
नवा-ए-शौक़ में शोरिश भी है क़रार भी है
ख़िरद का पास भी ख़्वाबों का कारोबार भी है
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
मिली क्या ख़ाक राहत कुंज-ए-मरक़द में निहाँ हो कर
ज़मीन-ए-गोर सर पर फिर रही है आसमाँ हो कर
रफ़ी अहमद आली
ग़ज़ल
एक दीवाने को इतना ही शरफ़ क्या कम है
ज़ुल्फ़ ओ ज़ंजीर से यक-गूना शग़फ़ क्या कम है
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
तिरी याद ही मिरी हम-नफ़स मिरी उम्र भर का हिसाब है
जो बिगड़ गई तो अजीब-तर जो सँवर गई तो किताब है
सईद अहमद सईद कड़वी
ग़ज़ल
आज से पहले तिरे मस्तों की ये ख़्वारी न थी
मय बड़ी इफ़रात से थी फिर भी सरशारी न थी