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ग़ज़ल
जो भरी दुनिया की संगीन अजाइब-नगरी में
अपना सर आप न फोड़े वो जहन्नम वासिल है
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
ये नगरी हुस्न वालों की अजब नगरी है ऐ हमदम
कि इस नगरी में आहों की भी तासीरें बदलती हैं
ख़ार देहलवी
ग़ज़ल
तिरी अंजुमन में ज़ालिम अजब एहतिमाम देखा
कहीं ज़िंदगी की बारिश कहीं क़त्ल-ए-आम देखा