aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ajantaa"
मैं ने लिख्खा है उसे मर्यम ओ सीता की तरहजिस्म को उस के अजंता नहीं लिख्खा मैं ने
ये ताज ये अजंता एलोरा के शाहकारअफ़्साने से लिखे हैं उरूज-ओ-ज़वाल के
यही महसूस होता है अजंता की गुफाओं मेंकि हर तस्वीर तो चुप है फ़न-ए-तस्वीर बोले है
दीवार-ओ-दर पे सब्त हैं नक़्श-ओ-निगार-ए-यारअपना मकान है कि अजंता कहें जिसे
ये अजंता ये हसीं ताज ख़बर देता हैपत्थरों में भी यहाँ चाँद खिला करते थे
हो ताज-महल या कि अजंता की गुफाएँफ़नकार के हाथों का हुनर बोल रहा है
दोस्त हक़ बात पे गोया तो हैं लेकिन ऐसेजैसे गोया हों अजंता की गुफाएँ बाबा
इस जुनूँ ने मुझे इस दर्जा शरफ़ बख़्शा हैबुत-गरी मुझ से अजंता का अमल माँगे है
सुनो कि आज भी हैं ज़ेहन के अजंता मेंमिरे 'नदीम' मुनक़्क़श वो सूरतें क्या क्या
गुज़र गुज़र के हर इक लम्हा संग-ज़ार हवाभटक रहा हूँ मैं यादो के इक अजंता में
इक ज़िंदा बुत के मरमरीं पैकर के सामनेबे-रंग ओ बे-नुमूद अजंता का फ़न रहा
शोख़ सी मूरत अजंता की खड़ी है रू-ब-रूमरमरीं अंगड़ाइयों में जल्वा-गर है शायरी
मीठी मीठी छेड़ कर बातें निराली प्यार कीज़िक्र दुश्मन का वो बातों में उड़ाना याद है
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोईजैसे एहसाँ उतारता है कोई
मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गयाहर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया
तुझ को ख़बर नहीं कि तिरा कर्ब देख करअक्सर तिरा मज़ाक़ उड़ाता रहा हूँ मैं
दूर के चाँद को ढूँडो न किसी आँचल मेंये उजाला नहीं आँगन में समाने वाला
मैं ने जिस लम्हे को पूजा है उसे बस इक बारख़्वाब बन कर तिरी आँखों में उतरता देखूँ
तुम आ गए हो तो कुछ चाँदनी सी बातें होंज़मीं पे चाँद कहाँ रोज़ रोज़ उतरता है
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