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ग़ज़ल
जो कह न पाऊँ वो काग़ज़ पे ढाल देता हूँ
ग़ुबार दिल के मैं यूँ भी निकाल देता हूँ
मिर्ज़ा अली अकबर औज
ग़ज़ल
पढ़ा नहीं था निसाब-ए-उल्फ़त अमल में आगे थे हर किसी से
समझती दुनिया अगर हमें बे-मिसाल होते कमाल होते
आबिद उमर
ग़ज़ल
कमाल-ए-ज़ब्त की होगी बयाँ तफ़्सीर काग़ज़ पर
रक़म कर दूँगा ऐसी दिल-नशीं तहरीर काग़ज़ पर
अय्यूब ख़ान बिस्मिल
ग़ज़ल
जिस से मिलते हैं मिलाते हैं अजल से उस को
चश्म-ए-क़ातिल में तुम्हारी ये कमाल अच्छा है