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ग़ज़ल
फ़ितरत ने अता की है बे-शक मुझ को भी कुछ अक़्ल-ए-सलीम
कौन ख़लल-अंदाज़ हुआ है मेरी हर दानाई में
ज़फ़र हमीदी
ग़ज़ल
अज़हर बख़्श अज़हर
ग़ज़ल
जमाल-ए-हुस्न-ए-तबस्सुम है चेहरा चेहरा मगर
दिलों में ख़ुशियों का फिर भी अकाल रहता है
ज़की तारिक़ बाराबंकवी
ग़ज़ल
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अगर होता वो 'मजज़ूब'-ए-फ़रंगी इस ज़माने में
तो 'इक़बाल' उस को समझाता मक़ाम-ए-किबरिया क्या है