आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "akar ank 033 giri raj kishore magazines"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "akar ank 033 giri raj kishore magazines"
ग़ज़ल
गिर पड़ता हूँ अक्सर मैं रह-ए-इश्क़ में जिस जा
इक मरहला होता है वो मंज़िल नहीं होती
राज़ चाँदपुरी
ग़ज़ल
ये जो सुना इक दिन वो हवेली यकसर बे-आसार गिरी
हम जब भी साए में बैठे दिल पर इक दीवार गिरी
जौन एलिया
ग़ज़ल
नक़्श-ए-क़दम के साथ वो रस्ते मिटा के रह गईं
अंधे सफ़र को आँधियाँ कितना बढ़ा के रह गईं