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ग़ज़ल
मिरे ख़्वाबों में ख़यालों में मिरे पास रहो
तुम मिरे सारे सवालों में मिरे पास रहो
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
हुस्न ही के दम से हैं ये कहानियाँ सारी
इश्क़ ही सिखाता है ख़ुश-बयानियाँ सारी
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
तुम्हारे दिल की तरह ये ज़मीन तंग नहीं
ख़ुदा का शुक्र कि पाँव में अपने लंग नहीं
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
आज यूँ मुझ से मिला है कि ख़फ़ा हो जैसे
उस का ये हुस्न भी कुछ मेरी ख़ता हो जैसे
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
वही गुमाँ है जो उस मेहरबाँ से पहले था
वहीं से फिर ये सफ़र है जहाँ से पहले था
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
ख़ुश-रंग किस क़दर ख़स-ओ-ख़ाशाक थे कभी
ज़र्रे भी ज़ेब-ओ-ज़ीनत-ए-अफ़्लाक थे कभी
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
किया है मैं ने तआ'क़ुब वो सुब्ह-ओ-शाम अपना
मैं दश्त दश्त पुकारा किया हूँ नाम अपना
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
सन्नाटा तूफ़ाँ से सिवा हो ये भी तो हो सकता है
ये कुछ और बड़ा धोका हो ये भी तो हो सकता है
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
सज़ा है किस के लिए और जज़ा है किस के लिए
पता नहीं दर-ए-ज़िंदाँ खुला है किस के लिए
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
ये शौक़ सारे यक़ीन-ओ-गुमाँ से पहले था
मैं सज्दा-रेज़ नवा-ए-अज़ाँ से पहले था
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
ये तन घिरा हुआ छोटे से घर में रहता है
पर अपना मन कि जो हर दम सफ़र में रहता है
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
सिखा सकी न जो आदाब-ए-मय वो ख़ू क्या थी
जो ये न था तो फिर इस दर्जा हाव-हू क्या थी
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
शाह-ए-दौराँ हज़रत-ए-'हामिद'-अली-ख़ाँ के सिवा
कौन है जिस की तवज्जोह से हो आसानी मुझे
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
इल्म-ए-आ'दाद से होता है हिजाब-ए-अकबर
एक हर हाल में हूँ कुल में रहा करता हूँ