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ग़ज़ल
हुदूद-ए-अक्ल-ओ-शर्ब का सवाल ही नहीं रहा
दिलों में ख़ौफ़-ए-रब्ब-ए-ज़ुल-जलाल ही नहीं रहा
शाद आरफ़ी
ग़ज़ल
बस-कि तेरे हिज्र में है ना-गवारा अक्ल-ओ-शर्ब
दिल ब-जुज़ ख़ून-ए-जिगर ऐ जान कुछ खाता नहीं
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
फ़ी-ज़माना है यही मस्लहत-ए-अक़्ल-ओ-शुऊर
दिल में ख़्वाहिश कोई उभरे तो दबा ली जाए
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
कुछ अक़्ल-ओ-होश-ओ-फ़हम-ओ-फ़िरासत में खो गए
कुछ दोस्त ख़ुद को ढूँड रहे हैं शराब में
सुदर्शन कँवल
ग़ज़ल
ख़ब्त है ऐ हम-नशीं अक़्ल-ए-हरीफ़ान-ए-बहार
है ख़िज़ाँ इन की इन्हें आईना दिखलाए हुए
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
मबादा फिर असीर-ए-दाम-ए-अक़्ल-ओ-होश हो जाऊँ
जुनूँ का इस तरह अच्छा नहीं हद से गुज़र जाना
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
जब मिले तूमार-ए-आगाही से फ़ुर्सत देखना
किन तहों में रम्ज़-ए-अक़्ल-ए-ना-रसा पोशीदा है
मोहम्मद आज़म
ग़ज़ल
'इश्क़ की मम्लिकत में है शोरिश-ए-अक़्ल-ए-ना-मुराद
उभरा कहीं जो ये फ़साद दिल ने वहीं दबा दिया
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
आबाद उन के जज़्ब-ए-मोहब्बत के दम से है
अक़्ल-ओ-दिल-ओ-ख़याल की दुनिया कहें जिसे