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ग़ज़ल
रंग-ए-ख़ूबान-ए-जहाँ देखते ही ज़र्द किया
आप ज़ोर आँखों में तस्वीर लिए फिरते हैं
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
फ़रंगी शीशागर के फ़न से पत्थर हो गए पानी
मिरी इक्सीर ने शीशे को बख़्शी सख़्ती-ए-ख़ारा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
न मारा आप को जो ख़ाक हो इक्सीर बन जाता
अगर पारे को ऐ इक्सीर गर मारा तो क्या मारा
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
असर इक्सीर का युम्न-ए-क़दम से तेरी पाया है
जोज़ामी ख़ाक-ए-रह मल कर बनाते हैं बदन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
शायद था बयाज़-ए-शब में कहीं इक्सीर का नुस्ख़ा भी कोई
ऐ सुब्ह ये तेरी झोली है या दुनिया भर का सोना है
हामिदुल्लाह अफ़सर
ग़ज़ल
हाथ आए है क्या ख़ाक तिरे ख़ाक-ए-कफ़-ए-पा
जब तक कि न क़िस्मत में हो इक्सीर किसी की
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
ऐ मुहव्विस जब कि ज़र तेरे नसीबों में नहीं
तू ने मेहनत भी पय-ए-इक्सीर फिर खींची तो क्या