aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "al ansar volume 003 ebooks"
बन गया इक ख़बरआइना टूट कर
आज इंकार न फ़रमाइए आपशब की शब घर मिरे रह जाइए आप
शक्ल बदली और अन्दर आ गयादुख नए कपड़े बदल कर आ गया
आह बे-गाना-ए-असर तो नहींवो भी अब मुझ से बे-ख़बर तो नहीं
निकल पाऊँ मैं कैसे इस असर सेमहकते फूल झड़ते हैं नज़र से
जब तिलिस्म-ए-असर से निकला थाज़हर-ए-शीरीं समर से निकला था
कमाल-ए-जिद्दत-ए-इंसाँ दिखाई देता हैजिसे भी देखिए उर्यां दिखाई देता है
बाहर भी अब अंदर जैसा सन्नाटा हैदरिया के उस पार भी गहरा सन्नाटा है
हुरमत-ए-तौक़ीर-ए-इंसाँ कर अज़ीज़छोड़ दे ये नफ़रत-ओ-तहक़ीर भी
ये पड़ाव तो इक बहाना थाहम ने रख़्त-ए-सफ़र गँवाना था
ज़वाल-ए-अज़्मत-ए-इंसाँ का मर्सिया हूँ मैंसर-ए-कशीदा पे दस्तार-ए-बे-अना हूँ मैं
सदा ज़-फ़ैज़-ए-असर ख़ामुशी न बन जाएजो बात कह न सकूँ आप ही न बन जाए
दिखा रही है जहाँ धूप अब असर अपनाबिखेरता था वहीं साया इक शजर अपना
आह असर हो गई तो क्या होगाबे-असर हो गई तो क्या होगा
सबब थी फ़ितरत-ए-इंसाँ ख़राब मौसम काफ़रिश्ते झेल रहे हैं 'अज़ाब मौसम का
आह शर्मिंदा-ए-असर न हुईकोई तदबीर कारगर न हुई
घेर कर जुरअत-ए-इंकार तलक ले आएलोग हम को रसन-ओ-दार तलक ले आए
बेकसी का अजीब आलम हैहम-नवा है न कोई हम-दम है
शुऊ'र-ए-फ़ितरत-ए-इंसाँ का है बेदार हो जानाकहीं मजबूर बन जाना कहीं मुख़्तार हो जाना
ये लोग जिस से अब इंकार करना चाहते हैंवो गुफ़्तुगू दर-ओ-दीवार करना चाहते हैं
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