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ग़ज़ल
अलख जमाए धूनी रमाए ध्यान लगाए रहते हैं
प्यार हमारा मस्लक है हम प्रेम-गुरु के चेले हैं
अफ़ज़ल परवेज़
ग़ज़ल
द्वारे द्वारे अलख जगाने को तो सारी 'उम्र पड़ी है
सेज सजी दो चार घड़ी को कर ले रैन बसेरा जोगी
बिमल कृष्ण अश्क
ग़ज़ल
सूरज में लगे धब्बा फ़ितरत के करिश्मे हैं
बुत हम को कहें काफ़िर अल्लाह की मर्ज़ी है