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ग़ज़ल
वो सियाह-रंग शमीम-शाम-ए-विसाल की जो नवेद है
इस अलम-गज़ीदा फ़िराक़ में वही ज़ुल्फ़ याद फिर आ गई
नियाज़ हैदर
ग़ज़ल
मैं वो आदम-गज़ीदा हूँ जो तन्हाई के सहरा में
ख़ुद अपनी चाप सुन कर लर्ज़ा-बर-अंदाम हो जाए
शकेब जलाली
ग़ज़ल
ख़ुर्शीदुल इस्लाम
ग़ज़ल
मुसलमाँ के लहू में है सलीक़ा दिल-नवाज़ी का
मुरव्वत हुस्न-ए-आलम-गीर है मर्दान-ए-ग़ाज़ी का
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
सरवर आलम राज़
ग़ज़ल
दहन-ए-ग़ुन्चा से पैग़ाम-ए-वफ़ा सुनते हैं
ग़ाज़ा-ए-आरिज़-ए-सद-हस्त-ए-अदम है हम को
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
तुम गुलिस्ताँ से गए हो तो गुलिस्ताँ चुप है
शाख़-ए-गुल खोई हुई मुर्ग़-ए-ख़ुश-इल्हाँ चुप है