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ग़ज़ल
मय-कदा सुनसान ख़ुम उल्टे पड़े हैं जाम चूर
सर-निगूँ बैठा है साक़ी जो तिरी महफ़िल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
इतना जुनून-ए-शौक़ दिया क्यूँ ख़ौफ़ जो था रुस्वाई का
बात करो ख़ुद क़ाबिल-ए-शिकवा उल्टे मुझ को रहने दो
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
उल्टे वो शिकवे करते हैं और किस अदा के साथ
बे-ताक़ती के ताने हैं उज़्र-ए-जफ़ा के साथ
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
अजब उल्टे मुल्क के हैं अजी आप भी कि तुम से
कभी बात की जो सीधी तो मिला जवाब उल्टा
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
बात बराए बात का ख़ालिस लुत्फ़ उठाएँ आज ज़रा
थोड़ी देर भुला दो झगड़ा उल्टे-सीधे मतलब का
हमीदा शाहीन
ग़ज़ल
उस की याद भी उस की तरह उल्टे वक़्तों आती है
शाम ढले तक दूर रहे और पास वो रात में होती है