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ग़ज़ल
तुम को है बहुत इंकार तो तुम भी इस की तरफ़ जा कर देखो
वो शख़्स अमावस रात को कैसे चाँदनी रात बनाए है
तालीफ़ हैदर
ग़ज़ल
रात अमावस की है सर पर और सन्नाटा दूर तिलक
दिल दरिया में सोचती हूँ कैसे तुग़्यानी होती है
तसनीम आबिदी
ग़ज़ल
क्यूँ चाँद से चेहरे पे गिरा रखी हैं ज़ुल्फ़ें
क्यूँ दिन को अमावस की सियह रात करो हो
जावेद नसीमी
ग़ज़ल
हमारे जान-ओ-ईमाँ हैं अमानत रब त'आला की
बड़ी बे-आबरूई है इन्हें यूँही लुटाने में