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ग़ज़ल
वो शरर हो या कि चराग़ हो है तपिश मिज़ाज में ऐ 'हिजाब'
कभी हर नफ़स को जला दिया कभी रौशनी को बढ़ा दिया
सलमा हिजाब
ग़ज़ल
'हिजाब' इस शहर-ए-ना-पुरसाँ में सब झगड़ा अना का है
सुरूर-ए-ख़ुद-परस्ती में ख़ुदी को कौन लिक्खेगा
हिजाब अब्बासी
ग़ज़ल
इश्क़ क्या है ख़ुद-फ़रामोशी मुसलसल इज़्तिराब
हुस्न क्या है जल्वा-आराई ब-अंदाज़-ए-हिजाब
सग़ीर अहमद सग़ीर अहसनी
ग़ज़ल
शौक़-अफ़ज़ा है ये अंदाज़-ए-हिजाब-ए-ख़ूबाँ
दिल में रहते हुए आँखों से निहाँ हो जाना
फ़ैज़ुल हसन ख़्याल
ग़ज़ल
अदा-ए-शर्म हो ख़ल्वत में या अंदाज़ शोख़ी के
तिरे हर नाज़ पर हम को तो जाँ ऐ दिलरुबा देना
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
ग़ज़ल
'हिजाब' पैहम ये कह रहा है गुनाहगारों ने जोश-ए-रहमत
मुबारक ऐ आसियो मुबारक शफ़ी-ए-रोज़-ए-जज़ा की आमद
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
ग़ज़ल
शाहजहाँ जाफ़री हिजाब अमरोहवी
ग़ज़ल
बे-ख़बर है अपने अंदाज़-ए-दिल-आराई से हुस्न
क्यों न उस को इश्क़ से भी बढ़ के दीवाना कहें
कँवल एम ए
ग़ज़ल
अब हसीं चेहरों पे मिलती है तसन्नो की नक़ाब
ग़म्ज़ा-ओ-इश्वा-ओ-अंदाज़-ओ-अदा कुछ भी नहीं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
है सौ अदाओं से उर्यां फ़रेब-ए-रंग-ए-अना
बरहना होती है लेकिन हिजाब-ए-ख़्वाब के साथ