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ग़ज़ल
लुत्फ़-आमेज़ हर अंदाज़-ए-सितम होता है
दर्द-ए-बीमार न बढ़ता है न कम होता है
सय्यद वाजिद अली फ़र्रुख़ बनारसी
ग़ज़ल
बेदाद-ए-तग़ाफ़ुल से तो बढ़ता नहीं ग़म और
मेरे लिए सीखो कोई अंदाज़-ए-सितम और
अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी
ग़ज़ल
किस तरह फिर कोई उम्मीद-ए-करम हो दिल में
जबकि अंदाज़-ए-सितम हौसला-अफ़्ज़ा न हुआ
सय्यद मुज़फ़्फ़र अहमद ज़िया
ग़ज़ल
वाक़िफ़ हैं वो ख़ुद अपने हर अंदाज़-ए-सितम से
हम कैसे कहें दिल में हैं ज़ख़्मों के निशाँ और
डॉ. अहमर रिफ़ाई
ग़ज़ल
सब करम है तिरे अंदाज़-ए-सितम से ऐ दोस्त
ज़ौक़-ए-ग़म दिल को न था तेरे सितम से पहले
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
ग़ज़ल
किसी पहलू किसी करवट न चैन आया न नींद आई
ये अंदाज़-ए-सितम तीर-ए-जिगर-अफ़गार में देखा
हामिद हुसैन हामिद
ग़ज़ल
तेरे अंदाज़-ए-सितम तेरे तग़ाफ़ुल के निसार
दिल में इक हसरत-ए-बेनाम-ओ-निशाँ बाक़ी है