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ग़ज़ल
इज्तिबा रिज़वी
ग़ज़ल
हुस्न-ए-निय्यत है दलील-ए-हुस्न अंजाम-ए-अमल
सई में भी जल्वा-ए-मक़सूद होना चाहिए
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
पारसा हम-राह ले जाएँगे पिंदार-ए-अमल
हम तो अपने साथ उन की ख़ाक-ए-पा ले जाएँगे
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
ज़िंदगी के नर्म काँधों पर लिए फिरते हैं हम
ग़म का जो बार-ए-गिराँ इनआम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
वो दिल को देखता है न आमाल-ए-ज़ाहिरी
लैला के ख़्वास्त-गार को महमिल से क्या ग़रज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ख़ूगर-ए-सई-ए-मुकाफ़ात-ए-अमल बन के 'अतीक़'
फ़ाएदा तू भी हर आसानी-ओ-मुश्किल से उठा
अतीक़ अहमद अतीक़
ग़ज़ल
अंजाम-ए-शौक़-ए-वस्ल-ए-बुताँ जानता तो है
रहता है बे-क़रार मिरा राज़-दाँ अबस
मोहम्मद ज़करिय्या ख़ान
ग़ज़ल
ज़ोहद-ओ-तक़्वा ओ इस्लाह-ए-दर-हुस्न-ए-अमल
कुछ नहीं मुझ में मगर क्या तिरी रहमत भी नहीं