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ग़ज़ल
अनोखी वज़्अ है सारे ज़माने से निराले हैं
ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या-रब रहने वाले हैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
तुम थे लेकिन दो हिस्सों में बटे हुए थे तुम
आँख खुली तो बिस्तर की हर सिलवट में था ख़ौफ़
फ़रीहा नक़वी
ग़ज़ल
तुम हो 'कलीम' अजब दीवाने बात अनोखी करते हो
चाह का भी अरमान है दिल में ख़ौफ़ भी है रुस्वाई का
कलीम उस्मानी
ग़ज़ल
मैं भी कब से चुप बैठा हूँ वो भी कब से चुप बैठी है
ये है विसाल की रस्म अनोखी ये मिलने की रीत नई है
अमीक़ हनफ़ी
ग़ज़ल
एक अनोखी लय से मैं ने सब के दिल पिघलाए हैं
दुनिया को ये वहम कि मेरे होंटों पर है अपनी बात
जमील मलिक
ग़ज़ल
हाल न पूछो रोज़-ओ-शब का कोई अनोखी बात नहीं
दिन को कैसे रात कहें हम रात भी अब तो रात नहीं