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ग़ज़ल
ज़माना 'शाद' बेगारी में क्यूँ आख़िर फंसाता है
अपाहिज कर दिया पीरी ने मुझ से काम क्या होगा
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
अपाहिज बाप को बेटा अकेला छोड़ जाता है
मुसीबत में तो अक्सर साथ साया छोड़ जाता है
लक्ष्मण शर्मा वाहिद
ग़ज़ल
इलाही किस से पूछें हाल हम गोर-ए-ग़रीबाँ का
कि सारे अहल-ए-महफ़िल चुप हैं उस ख़ामोश महफ़िल में
नूह नारवी
ग़ज़ल
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
नाग है साया-फ़गन सर पर हूँ मैं महव-ए-ख़िराम
मुझ अपाहिज को मयस्सर शंकर-आसा ख़्वाब है
काविश बद्री
ग़ज़ल
न जाने कौन अपाहिज बना रहा है हमें
सफ़र में तर्क-ए-सफ़र का ख़याल क्यूँ आया