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ग़ज़ल
तुंदी-ए-बाद-ए-मुख़ालिफ़ से न घबरा ऐ उक़ाब
ये तो चलती है तुझे ऊँचा उड़ाने के लिए
सय्यद सादिक़ हुसैन
ग़ज़ल
मुस्कुराती ज़िंदगी के ख़ून का प्यासा उक़ाब
वक़्त के हाथों में ज़ख़्मी फ़ाख़्ता दे जाएगा
जावेद अकरम फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
जहाँ के ज़ुल्म सहते सहते फ़ाख़्ता भी बारहा
अक़ब से पंजे मारती है फिर उक़ाब की तरह