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ग़ज़ल
टुकड़े टुकड़े मिरा दामान-ए-शकेबाई है
किस क़दर सब्र-शिकन आप की अंगड़ाई है
इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल
ग़ज़ल
हुज़ूर-ए-शाह में अहल-ए-सुख़न की आज़माइश है
चमन में ख़ुश-नवायान-ए-चमन की आज़माइश है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
यास की मंज़िल में तन्हाई थी और कुछ भी नहीं
जुरअत-ए-पर्वाज़ शर्माई थी और कुछ भी नहीं
शिव चरन दास गोयल ज़ब्त
ग़ज़ल
ब-रंग-ए-बाद-ए-सबा गुल खिलाए हैं क्या क्या
मिरे ही दिल ने सितम मुझ पे ढाए हैं क्या क्या
मुनव्वर लखनवी
ग़ज़ल
क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार देखी गर लब-ए-ख़ामोश की
क्यों करेगा आज़माइश सब्र-ए-पर्दा-पोश की
डॉ. हबीबुर्रहमान
ग़ज़ल
लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर
मैं हूँ वो क़तरा-ए-शबनम कि हो ख़ार-ए-बयाबाँ पर
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जो उस बे-रहम पर अपना दिल-ए-ख़ाना-ख़राब आया
गए सब्र-ओ-तहम्मुल होश-ओ-ताक़त इज़्तिराब आया