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ग़ज़ल
उस का जिस्म है जैसे हवा में मचलते धान की बाली
उस की शोख़ कटीली नज़रें जैसे अर्जुन के बान
कृष्ण कुमार तूर
ग़ज़ल
क्यों हाथ में अर्जुन के धनुष काँप रहा है
लश्कर में हैं दुश्मन के दिल-ओ-जान से चेहरे
अरमान ख़ान अरमान
ग़ज़ल
हाँ मुझे भी तुम से उल्फ़त है ये सुनने के लिए
ऐ 'अरूण' इक उम्र मैं ने काट दी हाए रे इश्क़