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ग़ज़ल
तरब-ज़ारों पे क्या बीती सनम-ख़ानों पे क्या गुज़री
दिल-ए-ज़िंदा तिरे मरहूम अरमानों पे क्या गुज़री
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
उम्मीद से रिश्ता टूट गया तुम क्या छूटे दिल छूट गया
अरमानों की बढ़ती खेती को सैल-ए-यास डुबोती है
तालिब बाग़पती
ग़ज़ल
दिखाऊँ तुझ को मंज़र क्या गुलों की पाएमाली का
चमन से पूछ ले नौ-ख़ेज़ अरमानों पे क्या गुज़री
सिकंदर अली वज्द
ग़ज़ल
दुआ है मेरी ऐ दिल तुझ से दुनिया कूच कर जाए
और ऐसी कुछ बने तुझ पर कि अरमानों से डर जाए
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
दीवानों से ये मत पूछो दीवानों पे क्या गुज़री है
हाँ उन के दिलों से ये पूछो अरमानों पे क्या गुज़री है
क़मर जलालाबादी
ग़ज़ल
'शाद' वही आवारा शाएर जिस ने तुझ से प्यार किया था
शहरों शहरों घूम रहा है अरमानों की लाश उठाए
नरेश कुमार शाद
ग़ज़ल
एहसास के सूखे पत्ते भी अरमानों की चिंगारी भी
इक दिल सीने में टूटा सा और फ़ितरत में दिलदारी भी
आज़िम कोहली
ग़ज़ल
काँटों में खिले हैं फूल हमारे रंग भरे अरमानों के
नादान हैं जो इन काँटों से दामन को बचाए जाते हैं
शैलेन्द्र
ग़ज़ल
मेरे अरमानों का मरकज़ मेरे दर्दों का इलाज
टिमटिमाता सा दिया इक गोशा-ए-मंज़िल में था