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ग़ज़ल
अब्दुल समद आसी
ग़ज़ल
देखिए होती है किस दिन फिर तजल्ली की नुमूद
देखता रहता हूँ हुस्न-ए-जल्वा-सामाँ की तरफ़
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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देखिए होती है किस दिन फिर तजल्ली की नुमूद
देखता रहता हूँ हुस्न-ए-जल्वा-सामाँ की तरफ़