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ग़ज़ल
यहाँ मस्तों के सर इल्ज़ाम-ए-हस्ती ही नहीं 'असग़र'
फिर इस के बाद हर इल्ज़ाम बे-बुनियाद होता है
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
दिखाई जंग में सूरत उधर जा पहुँचे वो कौसर
ये असग़र ही की थी रफ़्तार इधर आना उधर जाना
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
'असग़र' से मिले लेकिन 'असग़र' को नहीं देखा
अशआर में सुनते हैं कुछ कुछ वो नुमायाँ है