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ग़ज़ल
तोडूँगा ख़ुम-ए-बादा-ए-अंगूर की गर्दन
रख दूँगा वहाँ काट के इक हूर की गर्दन
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
जब मयस्सर है कि शग़्ल-ए-बादा-ओ-मीना करें
क्यों ग़म-ए-इमरोज़ क्यों अंदेशा-ए-फ़र्दा करें
रशीद शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
बादा-ए-ख़ुम-ए-ख़ाना-ए-तौहीद का मय-नोश हूँ
चूर हूँ मस्ती में ऐसा बे-ख़ुद-ओ-मदहोश हूँ
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
मुझ से पूछो असर-ए-बादा-ए-गुल-गूँ वाइज़
मैं हूँ रिंदों में बहुत नुक्ता-रस-ए-जाम-ए-शराब
हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा
ग़ज़ल
दिल में मत ढूँड कि ऐ तालिब-ए-ईसार-ओ-वफ़ा
अब ये अल्फ़ाज़ किताबों में नज़र आते हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
मुझे तो चश्म-ए-गुरेज़ाँ भी इल्तिफ़ात लगी
तिरे सितम पे भी ईसार का गुमाँ गुज़रा